जैविक खेती में जैव उर्वरक एवं जैव-कीट/रोग नाशी आधारित
लघु उद्योगों की उभरती संभावनाएं
डा0 प्रमिला गुप्ता
यश कृषि तकनीकी एवं विज्ञान केन्द्र इलाहाबाद
प्रोफेसर एमिरीटस
इलाहाबाद कृषि संस्थान इलाहाबाद।

भारत देश मे पिछले दो दशकों मे कृषि उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है, लेकिन आज भी हमारेे देश की उत्पादकता व गुणवत्ता विश्व के अन्य विकसित व विकासशील देश¨ से काफी पिछड़ी हुईं है। गुणवत्ता में कमी का मुख्य कारण कृषकों द्वारा अन्धाधुन्ध रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग है। अन्धाधुन्ध रासायनों के प्रयोग से रसायन अवशेष कृषि उत्पाद पर उपस्थित रहता है, जो कि भोजन के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर विभिन्न प्रकार की रोग एंव व्याधियों का कारण बनता है। यही नहीं रासायनों के अधिकाधिक प्रयोग से वातावरण (जल, वायु, मृदा) में भी इनकी बढ़ती उपस्थिति मानव सहित समस्त जीवधारियों के लिए संकट का कारण बनती जा रही है।
उपर्युक्त समस्याओं को ध्यान में रखते हुए एवं गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पाद उपलब्ध कराने के लिए आज जैविक खेती को अपनाना देश के कृषकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। जैविक खेती द्वारा निश्चित रूप से उत्पाद की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है तथा साथ ही भूमि की उर्वरता एवं उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सकता है।

जैविक खेती एवं इसका महत्व
जैविक खेती रासायनिक कीटनाशकों और रासायनिक उवर्रक से मुक्त होती है और फसलों की रोटेशन, हरी खाद (गाय का गोबर), कंपोस्ट और जैविक विधियों ;जैव उर्वरक¨ द्वाराद्ध पोषक तत्व प्रबंधनए जैविक कीट/र®ग नियंत्रण जैसी तकनीकों पर निर्भर होती है। यह पारिस्थितिकी तंत्र की जटिल श्रृंखला में संतुलन बनाने का काम करती है। दीर्घावधि में यह कृषि के निर्वाह स्तर को मजबूत बनाती है। जैव-विविधता संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभाती है। सतत कृषि मृदा स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में भी अहम योगदान देती है। नतीजतन सलों की पैदावार में इजाफा होता है। खेती की लागत गिरती है और किसानों की आमदनी में इजाफा होता है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति जागरुक लोगों में आर्गेनिक उत्पादों का क्रेज है इसलिए देश-विदेश में ये उत्पाद अपेक्षाकृत महंगी दरों पर उपलब्ध होते हैं।
जैविक उत्पादन के लिये तैयार भारतीय राष्ट्रीय कार्यक्रम के दिशा-निर्देशों के तहत जैविक तकनीक और तौर-तरीकों को अपनाते हुये महज 12 वर्षों में सिक्किम ने इस उपलब्धि को हासिल किया है। सिक्किम पूर्णतया जैविक (आर्गेनिक) विधि से खेती करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। 18 जनवरी गंगटोक में सतत कृषि सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने इसकी औपचारिक घोषणा की है। सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के लिए जैविक खेती को बेहतरीन विधि माना जाता है। सिक्किम की सफलता के बाद मिजोरम, अरूणाचल प्रदेश और केरल आर्गेनिक राज्य बनाने की कोशिशों में लगे हैं। आंध्रपदेश अगले तीन सालों मंे 1.5 लाख किसानों को आर्गेनिक खेती के लिए प्रशिक्षण देने जा रहा है।
जैविक खेती से लाभ –
ऽ जैविक खेती को अपनाकर कृषि लागत को कम किया जा सकता है क्योंकि जैव खाद, जैव उर्वरक एवं जीवनाशी, रासायनिक उर्वरकों एवं जीवनाशियों की अपेक्षा काफी सस्ते होते हैं।
ऽ जैविक खेती से किसी प्रकार के वातावरण प्रदूषण का कोई खतरा नहीं होता है।
ऽ जैविक उत्पाद स्वादिश्ट होते हैं क्योंकि इनमें रसायन का कोई अवषेश नहीं होता है।
ऽ जैविक विधि से की गयी कृशि टिकाऊ होती है क्योंकि इसमें भूमि में लाभदायक सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है, साथ ही भूमि की उर्वरा षक्ति भी बढ़ती है।
ऽ जैविक खेती से भूमि की संरचना में सुधार होता है, जिससे भूमि की जलधारण क्षमता बढ़ती है फलस्वरूप सिंचाई के रूप में लागत कम हो जाती है।
ऽ भूमि में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।
ऽ जैविक उत्पादों का बाजार मूल्य अधिक मिलता है जिससे प्रति इकाई भूमि की उत्पादकता में वृद्धि होती है।

जैविक खेती से निम्नलि£ित लघु उद्य®ग® की बढती संम्भावऐ
1 जैविक विधियों द्वारा पोषक तत्व प्रबंधन जैव उर्वरक¨ द्वारा –
इस विधि में प्रकृति में पाये जाने वाले विभिन्न सूक्ष्म जीवों का प्रयोग कर जैव उर्वरक तैयार किये जाते हैं। जैव उर्वरकों के प्रयोग से 25-30 प्रतिशत रसायन उर्वरकों की मात्रा को प्रत्येक वर्ष घटाकर लगभग 4-5 वर्ष में पूर्ण रूप से जैविक खेती मे अपनाया जा सकता है।

एजेटाबैक्टर –
यह एक प्रकार का जीवाणु है जो कि भूमि में स्वतन्त्र रूप से रहकर वायुमण्डल की नाइट्रोजन को षोशित कर नाइट्रेट में बदल देता है जो कि पौधे भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं।
राइजोवियम –
यह एक प्रकार का जीवाणु है जो दलहनी फसलों की जड़ों में पायी जाने वाली गांठों में सहजीवी रूप में पाया जाता है। तथा वायुमण्डल की नाइट्रोजन को षोशित कर पौधों को उपलब्ध कराता है।

फास्फेट सोल्युविलाइजर –
यह जीवाणु भूमि में उपस्थित फास्फोरस को घोल के रूप में परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं जिससे पौधों के लिए आवष्यक फास्फोरस की मात्रा की आपूर्ति होती है।

पोटाश मोविलाइजर –
यह एक प्रकार के जीवाणुओं का समूह होता है। जो कि भूमि में उपस्थित पोटैषियम को चलायमान कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं, जिससे पोटाष की आपूर्ति होती है।

इसी तरह सूक्ष्म तत्वों को भी उपलब्ध कराने वाले बहुत से जीवाणु सूक्ष्म तत्वों की आपूर्ति करते हैं। जैसे – जिंक, मैगनीज, सल्फर आदि।
खाद मेें मिलाकर एक एकड़ में प्रयोग करते हैं।

2 जैविक विधियों द्वारा कीट एवं रोग प्रबंधन –

ऽ एच.ए.एन.पी.वी. – यह एक प्रकार का विषाणु है जो कि विभिन्न प्रकार के तना बेधक, फल बेधक एवं जड़ बेधक कीटों की सूड़ियों को नियंत्रित करता है। जैसे चना फली बेधक, टमाटर फल बेधक, कपास बाल बेघक आदि।
ऽ एस.एल.एन.पी.वी. –
यह स्पोडोप्टेरा लिटूरा कीट की सूड़ी को मारने के लिए प्रयोग किया जाता है।
ऽ ट्राइकोकार्ड –
यह ट्राइकोग्राम नामक अण्डपरजीवी कीटनाषी है। इसके प्रयोग से 80-90 प्रतिषत कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है। यह बैगन, भिण्डी, गन्ना इत्यादि फसलों में लगने वाले फलबेधक, तनाबेधक कीटों के नियंत्रण हेतु प्रयोग करते हैं।
ऽ विवेरिया वैसियाना -यह एक फफूंद है जो कि हारिकारक कीटों के नियंत्रण हेतु प्रयोग होता है। यह कीटों जैसे – दीमक, सफेद, ग्रब, तनाबेधक आदि के लिए प्रभावी है।
ऽ ट्राईकोडर्मा –
यह एक प्रकार की फफूंद है जो रोग उत्पन्न करने वाली अन्य फफूंद को नश्ट करता है। यह विभिन्न फसलों में लगने वाले जड़, गलन, झुलसा, उकठा आदि रोगों के लिए प्रभावी है।
ऽ स्यूडोमोनास –
यह एक प्रकार का जीवाणु है जो फफूंद जनित रोगों के नियंत्रण हेतु प्रयोग किया जाता है। यह सब्जियों में लगने वाले रोगों जैसे – जड़ गलन, फल सड़न, झुलसा तना गलन आदि रोगों के लिए प्रभावी है।

जैविक £ेती मे प्रमाणीकरण की आवश्यकता
जैविक £ेती öारा पैदा किये गये उत्पाद¨ क¨ “जैविक” संज्ञा देने से पहले ।च्म्क्। मे पंजीकृत किसी प्रमाणिक संस्था öारा म्दकवतेमउमदज किया जाना आवश्यक है।
जैविक £ेती से उपयुक्र्त ह¨ने वाले सभी प्रकार के इनपुट(ठपव.थ्मतजपसप्रमतए ठपव.च्मेजपबपकमए व्तहंदपब डंदनतम) क¨ भी निम्नलि£ित संस्थान öारा प्रमाणित ह¨ना आवश्यक है।

जैविक उत्पाद¨ के प्रमाणीकरण हेतु कुछ भारतीय संस्थान
1ण् ठनतमंन टमतपजंेएब्मतजपपिबंजपवद प्दकपंए; ठटब्प्द्ध च्अजण् स्जकण्ए डनउइंप
2ण्म्ब्व्ब्म्त्ज् प्दकपंए च्अजण् स्जकण्एए ।नतंदहंइंक
3ण् प्डव् ब्वदजतवस च्अजण्स्जकण् ठंदहंसवतम
4ण् प्दकपंद व्तहंदपबए ब्मतजपपिबंजपवद ।हमदबलए ;प्छक्व्ब्म्त्ज्द्ध ब्वबीपद ;ज्ञमतंसंद्ध
5ण् स्ंबवद फनंसपजलए ब्मतजपपिबंजपवद च्अजण् स्जकण्ए ज्ीपतनअंससं ;ज्ञमतंसंद्ध
6ण् व्दमब्मतज ।ेपं ।हतपए ब्मतजपपिबंजपवद ;च्द्ध स्जक श्रंपचनत.302020ए त्ंरंेजींद
7ण् ब्वदजतवस न्दपवदए ब्मतजपपिबंजपवदेए डनउइंप
8ण् न्जजंतंाींदक ैजंजमए व्तहंदपब ब्मतजपपिबंजपवद ।हमदबलए ;न्ैव्ब्।द्ध क्मीतंकनदए
न्जजंतंाींदक
9ण् ।च्व्थ् व्तहंदपब ब्मतजपपिबंजपवद ।हमदबलए ;।व्ब्।द्ध ठंदहंसवतम
10ण् त्ंरंेजींद व्तहंदपब ब्मतजपपिबंजपवद ।हमदबलए ;त्व्ब्।द्ध श्रंपचनत
11ण् ब्ीींजजपेहंती ब्मतजपपिबंजपवद ैवबपमजलए ;ब्ळब्म्त्ज्द्ध त्ंपचनतए प्दकपं
12ण् ज्ंउपस छंकन व्तहंदपब ब्मतजपपिबंजपवद क्मचंतजउमदजए ;ज्छव्ब्क्द्ध ब्वपउइंजवतम

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1. Bureau Veritas,Certification India,( BVCI) Pvt. Ltd., Mumbai
2. ECOCERT India, Pvt. Ltd.,, Aurangabad
3. IMO Control Pvt.Ltd. Bangalore
4. Indian Organic, Certification Agency, (INDOCERT) Cochin (Kerala)
5. Lacon Quality, Certification Pvt. Ltd., Thiruvalla (Kerala)
6. OneCert Asia Agri, Certification (P) Ltd Jaipur-302020, Rajasthan
7. Control Union, Certifications, Mumbai
8. Uttarakhand State, Organic Certification Agency, (USOCA) Dehradun,
Uttarakhand
9. APOF Organic Certification Agency, (AOCA) Bangalore
10. Rajasthan Organic Certification Agency, (ROCA) Jaipur
11. Chhattisgarh Certification Society, (CGCERT) Raipur, India
12. Tamil Nadu Organic Certification Department, (TNOCD) Coimbatore