धान की खेती में सामयिक कृषि कार्य
डा0 प्रमिला गुप्ता
यश कृषि तकनीकी एवं विज्ञान केन्द्र इलाहाबाद
प्रोफेसर एमिरीटस
इलाहाबाद कृषि संस्थान इलाहाबाद।

भारत वर्ष में धान की खेती लगभग 25ः कृषि योग्य भूमि पर की जाती है। कार्बोहाईडेªट की भोजन में आपूर्ति के लिए चावल के रूप में यह एक मुख्य भोज्य पदार्थ है। यह पूर्वी उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर, हरियाणा, पंजाब, विहार, बंगाल, उड़िसा, आसाम, मणिपुर एवं सम्पूर्ण दक्षिण भारत में धान ही खरीफ की फसल के रूप उगाया और खाया जाता है। उत्तर प्रदेश में धान की प्रमुख प्रजातियां है। नरेन्द्र-2, नरेन्द्र-118, नरेन्द्र-80 आदिए सुगन्धित प्रजातियां जैसे पूसा बासमती, बासमती-370 हाईबे्रड किस्में जैसे- प्रो0 एग्रो-6210, प्रो-एग्रो-6444 आदि सुगन्धित प्रजातियां 35-45 विरल है। हाईबे्रड किस्में 80-90 विरल हैं एवं अन्य किस्में 40-60 विरल है।
भूमि चुनाव:- धान की खेती के लिए प्रायः समतल दोमट से भरी दोमट चिकनी मिट्टी ही अच्छी होती है। नीची-ऊंची जमीन में भी यह ज्मततंबम थ्ंतउपदह इत्यादि विधियों द्वारा और जगहों पर भी धान की खेती की जा सकती है।
नर्सरी प्रबन्धन:-
1. एक हेक्टेअर खेत के लिए 0.1 हेक्टेअर की नर्सरी पर्याप्त होती है। बीज डालने से पहले नर्सरी की जमीन में एक टन सड़ी खाद, 50 किलोग्राम एस0एस0पी0 एवं 50 किलोग्राम एम0ओ0पी0 मिला दें। इस बीच बीज को एक प्रतिशत नमक के खोल में तैरा लें। जिससे हल्के रोगिक बीज तैर कर निकल जाते हैं। दो-तीन बार साफ पानी से धोकर बीज का शोधन करें। बीज शोधन के लिए प्रायः 4-5 ग्राम ट्राईकोडरमा पाउडर प्रति किलोग्राम बीज की दर से अथवा ……………से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधन करें। सुगन्धित पतले दानें का धान 30 किलोग्राम, मध्यम वर्ग की प्रजाति के लिए 40 किलोग्राम एवं मोटी प्रजातियों के लिए 50 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेअर पर्याप्त होता है। नर्सरी के खेत में प्रायः 1 डण् × 10 डण् क्यारियां बनायं एवं दो क्यारियों के बीच में आधे मीटर चैड़ाई की नालियां बनाये फिर नम टाट की बोरी से 24 से 48 घण्टे तक बीज को ढक कर रखें। इस बीच बीज अंकुरित हो जायेगा। फिर नर्सरी में बोवाई करें।
प्रति 1डण् × 10 डण् क्यारियां में 50 किलोग्राम यूरिया डाल कर भली-भाँति मिलाए और अंकुरित बीज की बोवाई कर दें। 12 से 15 दिन पर खर पतवार निकालें और ज्वच क्तमेेपदह यूरिया से करें और 20 से 25 दिन में नर्सरी 69की पौध रोपाई के लिए तैयार हो जायेगी।
खेत की तैयारी:- इस बीच खेत में 120 किलोग्राम नाईट्रोजन, 60 किलोग्राम एस0एस0पी0 एवं 60 किलोग्राम एम0ओ0पी0 प्रति हेक्टेअर की दर से समतलीकरण पानी की सिंचाई से भली-भाँति मिला दे और रोपाई करें। साधारण रूप से पंक्तियों पौधों की दूरी 20×10 सेन्टीमीटर रखें। रोपाई के बाद जो पौधे मर जाये उनके स्थान पर दूसरे पौधे तुरन्त लगा दें। ताकि पौधों की निर्धारित संख्या कम न होने पावें।
कीट रोग प्रबन्धनः- हमारे देश में कपास के बाद धान की फसल में सबसे अधिक कीट नाशक का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि इस फसल में अनेकों कीट एवं रोग लगते हैं, जो उपज को नुकसान पहुंचाते है और हमारे किसान भाईयों को उनकी मेहनत और लागत का उचित लाभ नहीं मिल पाता। धान के प्रमुख कीट एवं रोग निम्न हैंः-
हिस्पा, तना छेदक, पीला चना छेदक, पत्ती मोड़क, सैनिक कीट, गंधी कीट, फुदका आदि धान के प्रमुख रोग हैं। झोंका (ब्लास्ट) जीवाणु, झुलसा (ब्लाईट), फाल्स, स्मट, पत्ती पटल का झुलसा (राईजोक्टोनियां) आदि उपर्युक्त सभी कारकों से अपनी फसल बचाने के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि किसान भाईयों को एकीकृत कीट/रोग प्रबन्धन की विधियां अपनानी चाहिए एवं समयानुसार, विधिपूर्वक जैविक व सुरक्षात्मक विधियों द्वारा व केवल फसल परन्तु पर्यावरण को भी विषैले कीटनासिकों के दुष्प्रभाव से सुरक्षित रखना चाहिए।
एकीकृत कीट/रोग प्रबन्धन विधियाँः-
1. पिछली फसल की कटाई के बाद खेठ (अवशेषों) को नष्ट कर दें।
2. गर्मी के खेत की गहरी जुताई कर छोड़ दें।
3. खेत के आस-पास के क्षेत्रों, मेड़ों की खरपतवार रहित रखना चाहिए। इससे अनकों कीटों/रोगों की संख्या कम हो जाती है। जैसे- गंधी कीट आदि खैरा रोग प्रबन्धन के लिए 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट, 2.5 किलोग्राम बुझा हुआ चूना, 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेअर बोवाई के 10 दिन बाद और दोबारा 20 दिन बाद सुरक्षात्मक छिड़काव करें।
4. नर्सरी में बीज बोने से पहले बीज शोधन अवश्य करें। जीवाणु, झुल्सा के लिए बीज की ैजतमचजवबलबीपद 5 हउण् 50 लीटर पानी के घोल में रात भर भिगा दें। अगले दिन छाया में सुखा कर नर्सरी डालें। इसी प्रकार भूरा धब्बा और ब्लास्ट के लिए 2.5-3 किलोग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज के लिए उपचारित करें।
5. यदि नर्सरी में तना छेदक (1 पतंगा/1 अण्डगुच्छ) प्रति वर्गमीटर में दिखई दे तब रोपाई के पहले धान की पौध की जड़ों को 0.02 प्रतिशत क्लोरोपाईरिफास $.5-1 प्रतिशत यूरिया के घोल में 6 घंटे डुबाकर रोपाई करें।
6. रोपाई के 15 दिन बाद खैरा रोग प्रबन्धन के लिए एक सुरक्षात्मक छिड़काव 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट, 20 किलोग्राम यूरिया का 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। प्रति हेक्टेयर की दर से।
7. संस्तुत मात्रा में ही उरवर्को का प्रयोग करें
8. बोवाई समय से करें। नर्सरी समय से एवं ऊंचाई पर लगाएं।
9. कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं को संरक्षण दें।
10. पौधे से पौधों एवं लाईन से लाईन की दूरी बनाएं रखें।
11. कीट ग्रसित पौधों को नष्ट कर दें।
12. प्रकाश प्रपंच लगाकर कीटों की संख्या नियंत्रित रखें। विशेषकर यह विधि तना छेदक, पीला तना छेदक, पत्ती मोड़क कीट आदि के नियंत्रण में यह विधि अधि प्रभावी है।
13. बेघक कीटों के नियंत्रण के लिए गंध पादा (च्ीमेवउमब तिबंिे ध् सउउमे) का प्रयोग करें।
14. खड़ी फसल में बेधक कीटों के नियत्रण के लिए अण्ड परजीवी ट्राईकोग्रापा ततैया 50000 प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
15. कीटों की आर्थिक क्षति सीमा पर परजीवी फफूंद बिवैरिया बैसियाना का 2.5 प्रतिशत घोल -1000 लीटर की दर से प्रति हेक्टेयर है। 15-20 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें। इस कफा से अनेक प्रकार के कीटों का नियंत्रण होता है।
16. सैनिक कीट से बचाव हेतु लगातार खेत का सर्वेक्षण करें और आक्रमण की प्रांरभिक अवस्था में ही पक्षियों के बैठने के लिए स्थान-स्थान पर बांस की पट्यिों डाल दें अथवा सूखी रहनी गाढ़ दें। मेंड़ों पर पका चावल विखेर दे। इससे पक्षी आर्कषित होते है जो कीटों और सूड़ी को चुग जाते हैं।
17. खेत में दीमक का प्रकोप कम करने के लिए जैविक कीटनाशी फफंूद मैटाराईजिएम अथवा बिवैरिया बैसियाना का 1 किलोग्राम/50 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद में मिला कर प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में दो तीन बार छिड़काव करें।
18. दाने दार कीटनाशी जैसे कार्बोक्यूरान, फोरेट 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में प्रयोग करें।
19. ब्लास्ट के आने पर बैसिस्टिन का घोल प्रति ग्राम प्रति लीटर पानी में बनाकर 4-5 बार स्प्रे प्रति 10 दिन के अन्तराल पर करें अथवा क्पजींदम ड-45 (2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) 1000 लीटर पानी में 5 छिड़काव सुरक्षात्मक करें। 1-नर्सरी, 2-टितरिंग, 3-5 बाली निकलने की अवस्था में एवं उसके बाद इससे भूरा धब्बा रोग का भी नियंत्रण होता है।
20. फाल्स स्मट रोग की रोकथाम के लिए कापर आक्सीक्लोराईड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
21. पत्ती पटल का झुल्सा, अंगमारी, शीत ब्लाईट के नियंत्रण के लिए ट्राईकोडरमा नामक जैविक कवकनाशी फफंूद का 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
इस प्रकार बीज की बोवाई से लेकर फसल कटने तक एकीकृत प्रबन्धन कर आवश्यक निगरानी करना चाहिए।
इस प्रकार किसान भाई समय≤ पर पता लगाने पर उचित विधियां समयानुसार कौनसी क्रिया करने की आवश्यकता जान कर अपनायें जिससे उनको उनकी मेहनत एवं लागत का उचित मुनाफा मिल सकें।
अच्छा हो कि धान की खेती में जुटे किसान भाई मिल जुल कर एक निगरानी करने वाली समूह गठित कर ले जिसमें अनुभवी सदस्यों को शामिल करें जिससे हर परिस्थिति, परिवेश का विशलेषण एवं सही आकलन कर सुरक्षात्मक उपायों की समयानुसार संस्तुति सभी को मिल सकें।